सच तो यह है कि वह कहीं गए ही नहीं थे ! तुम्हारे नयनों के सामने नहीं बल्कि मन में बसे थे !! भोर की सुनहरी किरण और पक्षियों के गीत ने ! मिला दिया है तृषा को उनके मन मीत से !!
एक विचार : चाहे कोई माने या न माने, लेकिन हमारे विचार हर अच्छे और बुरे, प्रिय और अप्रिय के प्राथमिक कारण हैं!
-लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666. E-mail : dplmeena@gmail.com E-mail : plseeim4u@gmail.com http://baasvoice.blogspot.com/ http://baasindia.blogspot.com/
सतसैय्या के दोहरे...
ReplyDeleteदेखन में छोटे लगें....
बहुत सुन्दर रचना!
bahut hi khubsurat ehsas. kabhi hamari rachnao par bhi gaur kare.
ReplyDeleteखूबसूरत पंक्तियां।
ReplyDeletenice lines
ReplyDeleteएक अच्छा प्रयास
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना|
ReplyDeletebahut khoob likha trisha ji aise hi likhte rahiye aap ki sundar sundar rachnayen padne ko milti rahengi .... thanx
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना|
ReplyDeleteअद्भुद पंक्तियों के आभार स्वरुप ..............
ReplyDeleteसच तो यह है कि वह
कहीं गए ही नहीं थे !
तुम्हारे नयनों के सामने नहीं
बल्कि मन में बसे थे !!
भोर की सुनहरी किरण
और पक्षियों के गीत ने !
मिला दिया है तृषा को
उनके मन मीत से !!
kam panktiyo me bahut kuchh kaha daala .......achchhi prastuti
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteप्यारा लिखा है आपने....
ReplyDeleteप्रतीक्षारत........
ब्लॉग जगत में स्वागत है.......
ReplyDeleteइस नए और सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteसुन्दर नव-अगीत..बधाई........ नव-अगीत , अतुकान्त कविता की एक विधा--अगीत का एक छंद है जो ३ से ५ पन्क्तियों का अतुकान्त गीत होता है।
ReplyDeleteवाह कमाल का लिखा है. जारी रहें.
ReplyDelete--
धनतेरस व दिवाली की सपरिवार बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं.
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वात्स्यायन गली
शानदार प्रयास बधाई और शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteएक विचार : चाहे कोई माने या न माने, लेकिन हमारे विचार हर अच्छे और बुरे, प्रिय और अप्रिय के प्राथमिक कारण हैं!
-लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.
E-mail : dplmeena@gmail.com
E-mail : plseeim4u@gmail.com
http://baasvoice.blogspot.com/
http://baasindia.blogspot.com/