Thursday, September 16, 2010

परिंदे की उडान

उडान
उंची और ऊंची
उडते उडते
इतना उंचे पहुंच गयी कि
नीचे धरती एक परिंदे जैसी
नजर आने लगी!!

इन ऊंचाईयो पर पहुंचकर
सोचती हूं
क्या कभी वापस अपनी धरती,
अपने वतन लौट पाऊंगी??

4 comments:

  1. आशा और विश्वास,
    सदैव रखिए अपने पास!
    --
    बहुत सुन्दर रचना है!
    जाल-जगत पर आपका अभिनन्दन करता हूँ!
    --
    टिप्पणियों को सहजरूप से पाने के लिए
    शब्द-पुष्टिकरण (WORD VERIFICATION) हटा दीजिए।

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  2. wow trisha di..... kitni achhi baat likhi aapne...

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  3. "इन ऊंचाईयो पर पहुंचकर
    सोचती हूं
    क्या कभी वापस अपनी धरती,
    अपने वतन लौट पाऊंगी??"

    ऊँची सोच - बड़ी बात

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